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Tuesday, March 28, 2023

Paapmochni Ekadashi 2023: पापमोचनी एकादशी आज, जानिए पूजा विधि, महत्‍व, पौराणिक कथा


Publish Date: | Sat, 18 Mar 2023 08:52 AM (IST)

भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। आज चैत्र कृष्ण एकादशी है। इस तिथि को पापमोचनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ द्विपुष्कर योग में पापमोचनी एकादशी मनाई जा रही है। हर वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। हिंदू धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने में पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की जीवन में गलतियां हैं, जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, अगर पापमोचनी एकादशी का व्रत कर लिया जाए।

इस व्रत का महत्‍व

पंडित आलोक उपाध्याय ने बताया कि सभी धर्मों में पाप-पुण्य का महत्व है। किसी के द्वारा किए गए सही और गलत कामों को पाप-पुण्य में बांटा जाता है। अनजाने में की गई गलतियों की सजा भले न मिले पर उसके परिणाम जरूर भुगतने पड़ते हैं, इसलिए हर धर्म में गलती होने पर उसके पश्चाताप के तरीके को सुझाया गया है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र गोदान अर्थात 1000 गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। प्राचीन काल में पाप का प्रायश्चित करने के लिए देवता, मनुष्य या भगवान भी प्रायश्चित करते थे। जैसे त्रेता युग में भगवान राम ने रावण का वध किया, जो सभी वेद शास्त्रों का ज्ञाता होने के साथ ब्राह्मण भी था। इस कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा था। इसके बाद उन्होंने कपाल मोचन तीर्थ में स्नान और तप किया था जिसके चलते उन्होंने ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाई थी।

व्रत कथा

पंडित विष्णु राजौरिया ने बताया कि कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में घोर तपस्या में लीन थे तभी मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी। उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मोहित हो गई। इसके बाद अप्सरा उनकी तपस्या भंग करने लगी। कामदेव भी उनकी तपस्या भंग करने के लिए मदद में जुट गए। इसके बाद मेधावी भगवान शिव की तपस्या करना भूल गए। कुछ समय बाद मेधावी को जब गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। अप्सरा ने अपनी गलती की क्षमा मांगी। अप्सरा की याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे पापों से मुक्ति मिल गई। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज और सौंदर्य प्राप्त किया।

पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्‍नान करें। स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण कर व्रत का संकल्‍प लें। इस दिन भगवान विष्‍णु के चतुर्भुज स्‍वरूप की पूजा करने का विधान है। घर में पूजा स्‍थल पर चौकी के ऊपर कोरा कपड़ा बिछाएं। कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं। भगवान विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर स्थापित करें। भगवान को पीले फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें। फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें। शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें। अगले दिन ब्राह्मण और गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।

डिसक्लेमर – ‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

Posted By: Ravindra Soni

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